कालानमक चावल पोषक तत्वों की वजह से अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान केंद्र (इरी) वाराणसी इस पर काम भी कर रहा है। इरी में इस बाबत जारी शोध अंतिम चरण में है। इसमें अपेडा (एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्टस एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथारिटी) भी सहयोग कर रहा है।

लखनऊ। अपनी सुगंध एवं स्वाद के लिए विख्यात, सिद्धार्थनगर का ओडीओपी (एक जिला एक उत्पाद) कालानमक चावल अब कुपोषण को भी दूर करेगा। दरअसल कालानमक चावल में परंपरागत चावल की किस्मों की तुलना में जिंक एवं आयरन अधिक होता है। जिंक दिमाग के लिए जरूरी है। रही आयरन की बात तो इसकी कमी की वजह से होने वाली एनीमिया (रक्तअल्पता) आम हिंदुस्तानियों खासकर किशोरियों एवं महिलाओं में आम है। कालानमक चावल का गलेशमिक इंडेक्स भी तुलनात्मक रूप से कम होता है। लिहाजा यह शुगर के रोगियों के लिए भी कुछ हद तक मुफीद है। शुगर के बारे में कहा जाता है कि भारत इस रोग की राजधानी है।

इसी नाते करीब एक दशक पहले केंद्र सरकार ने देश के कुपोषित जिलों के लिए एक “न्यूट्री फॉर्म मैनेजमेंट” योजना तैयार की थी। मकसद यह था कि संबंधित जिलों में वहां की कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुसार उन फसलों को प्रोत्साहित किया जाय, जिनमें अधिक पोषक तत्वों हों। उस समय इन 100 जिलों में करीब तीन दर्जन जिले उत्तर प्रदेश के थे इसमें भी करीब 12 जिले पूर्वी उत्तर प्रदेश के थे।

बाद में वर्तमान केंद्र सरकार ने कई मानकों के आधार पर देश के जिन 115 जिलों को आकांक्षात्मक जिलों को चुना उनमें पूर्वांचल के तीन जिले शामिल हैं।

हालांकि तब से लेकर अब तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर कई योजनाओं के जरिए कुपोषण पर करारा प्रहार हुआ है। बावजूद इसके अब भी यह प्रदेश के लिए बड़ी चुनौती है। कालानमक चावल इसे दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। कालानमक चावल पोषक तत्वों की वजह से अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान केंद्र (इरी) वाराणसी इस पर काम भी कर रहा है। इरी में इस बाबत जारी शोध अंतिम चरण में है। इसमें अपेडा (एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्टस एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथारिटी) भी सहयोग कर रहा है।

इरी के दक्षिण एशिया रीजन के निदेशक डॉक्टर सुधांशु सिंह और वैज्ञानिक डॉक्टर सौरभ भदोनी के मुताबिक कान्फ्लैक्स (दूध के साथ सेवन करने वाला पौष्टिक आहार), पास्ता, बिस्किट, खीर, आइसक्रीम, ब्रेड, कुकीज के रूप में प्रसंस्कृत करने पर शोध कार्य चल रहा है। इनका उपयोग रोगी के साथ सामान्य व्यक्ति भी कर सकेंगे।

भगवान बुद्ध का प्रसाद माना जाता है कालानमक
उल्लेखनीय है कि कालानमक धान का इतिहास करीब छह हजार साल पुराना है। इसे भगवान बुद्ध का प्रसाद माना जाता है। इसकी तमाम खूबियों के ही नाते योगी सरकार-1 में शुरू की गई फ्लैगशिप योजना में इसे सिद्धार्थनगर का ओडीओपी (एक जिला एक उत्पाद) घोषित किया गया। इसके बाद खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इसकी ब्रांडिंग में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इसी क्रम में कपिलवतु में कालानमक चावल महोत्सव भी आयोजित किया गया है। एक ही छत के नीचे सारी आधुनिक सुविधाएं मुहैया कराने के लिए वहां कॉमन फैसिलिटी सेंटर (सीएफसी) का निर्माण कराया गया। कृषि वैज्ञानिक आरसी चौधरी के मुताबिक अब तक चावल के लिए कालानमक धान की कुटाई परंपरागत पुरानी मशीनों से होता था। अधिक टूट निकलने से दाने एक रूप नहीं होते थे। भंडारण एवं पैकेजिंग एक बड़ी समस्या थी।

सीएफसी में हर चीज की अलग व्यवस्था होगी। पहले धान को ड स्टोनर मशीन से गुजारा जाएगा। इससे इसमें कंकड़-पत्थर अलग हो जाएंगे। धान से भूसी अलग करने और पॉलिशिंग की मशीनें अलग-अलग होंगी। असमान दानों के लिए शॉर्टेक्स मशीन होगी। उत्पादक की मांग के अनुसार पैकिंग की भी व्यवस्था होगी। धान के भंडारण के लिए सामान्य और तैयार चावल को लंबे समय तक इसकी खूबियों को बनाए रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था होगी। इस तरह से यहां से निकलने वाला चावल अपनी सभी खूबियों के साथ पूरी तरह शुद्ध होगा।

सरयू नहर ने बढ़ा दी कालानमक की संभावना
कालनमक के लिए जिन जिलों को जीआई जियोग्राफिकल इंडिकेशन मिला है और इन सभी जिलों को सिंचित करने वाली सरयू नहर और केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा कालानमक को पांच जिलों (सिद्धार्थनगर, बस्ती, संकबीरनगर, गोरखपुर, महराजगंज और देवरिया) का ओडीओपी घोषित करने की भी उल्लेखनीय भूमिका है।

पूर्वांचल के किसानों के लिए कालासोना सरीखा हो जाएगा कालानमक
कालानमक धान को पूर्वांचल के 11 जिलों (गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, बस्ती, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर और गोंडा) के लिए जीआई प्राप्त है। मसलन इन जिलों की एग्रो क्लाइमेट (कृषि जलवायु) एक जैसी है। लिहाजा इस पूरे क्षेत्र में पैदा होने वाले कालानमक की खूबियां समान होंगी। इनमें से बहराइच एवं सिद्धार्थनगर नीति आयोग के आकांक्षात्मक जिलों की सूची में शामिल हैं।

कालानमक की इन संभावनाओं को सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना ने और बढ़ा दिया। अन्य फसलों की तुलना में धान की फसल को पानी की अधिक जरूरत होती है। संयोग से चार दशक बाद पूरी होने वाली सरयू नहर से सिंचित होने वाले जिले बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, गोरखपुर और महराजगंज वही हैं जिनको कालानमक के लिए जीआई मिली है। इससे इसकी संभावनाएं और बढ़ जाती हैं।

ऐसा होने पर कई गुना बढ़ सकती है बिक्री और किसानों की आय
कालानमक चावल के बिक्री और निर्यात में करीब चार गुना तक इजाफा होगा। शुद्धता की गारंटी मिलने पर देश-विदेश में इसकी मांग बढ़ेगी। मांग बढ़ने से किसानों को वाजिब दाम मिलेंगे। इससे उनकी आय बढ़ेगी। सरकार की यही मंशा भी है।


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