आने वाला समय अखिलेश यादव लिए राजनीति में निर्णायक हो सकता है लिहाजा उन्हें बहुत ही संभाल के अपने कदम आगे बढ़ने होंगे।

बीते कुछ दिनों से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही है। चाचा शिवपाल सिंह के साथ उनके सम्बन्ध फिर से खराब होते दिखाई दे रहे है।
हाल ही में शिवपाल सिंह के बीजेपी में शामिल होने की अटकलों पर अखिलेश यादव ने स्पष्ट कहा कि जो बीजेपी में है वो सपा में नहीं रह सकता । दूसरी तरफ आज़म ख़ान के करीबी अखिलेश पर सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगा रहे है। कुछ नेता और विधायक पहले से ही पार्टी छोड़ कर जा चुके हैं। कई जिलों में सपा कार्य कर्ताओं के शोषण की खबर भी आई है।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में बसपा और कांग्रेस अपने वजूद के लिए संघर्षरत है , सिर्फ सपा ही ऐसी पार्टी है जो विपक्ष में मजबूती से खड़ी है। स्वस्थ लोक तंत्र के लिए विपक्ष का भी मजबूत होना अनिवार्य है।

आने वाला समय अखिलेश यादव लिए राजनीति में निर्णायक हो सकता है लिहाजा उन्हें बहुत ही संभाल के अपने कदम आगे बढ़ने होंगे।

अखिलेश यादव के राजनीतिज्ञ हुनर पर पहले से ही उंगलियां उठाती रही है , मुख्यमंत्री का पद उन्होंने बिना संघर्ष किए अपने पिता से पाया । और इनके पारिवारिक विवाद भी समय समय पर सुर्खियों में आते रहे है।
ऐसे में अपने आप से पहले संगठन हित पर काम करना अखिलेश यादव की प्राथमिकता होनी चाहिए । सारे गिले शिकवे भुला के योग्य और कद्दावर नेताओं से संबंध बना कर वो अपनी राजनीतिज्ञ जमीन बना पाएंगे । क्योंकि बीजेपी पहले से ही मजबूत और विरोधियों के लिए आक्रामक शैली में है । ऐसे हालातों में अखिलेश यादव का अकेले पड़ जाना उनके राजनीतिज्ञ जीवन के भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं है।
जब बीजेपी जैसी मजबूत पार्टी प्रतिद्वंदी हो और अपने ही बागी हो रहे हो तो संकुचित विचारधारा को छोड़ना पड़ेगा।
अब समय है जब अखिलेश यादव को बदलाव अपनाने पड़ेंगे और समुदाय विशेष की राजनीती को छोड़ कर सभी संभावनाओं को तलाशना होगा ।
२०२४ और २०२७ के चुनाव अखिलेश यादव के लिए एक स्वर्णिम मौका है खुद को साबित करने के लिए। इसकी तैयारी उन्हें आज और अभी से करनी पड़ेगी । क्योंकि संगठन में फूट से उनके नैया इस राजनीतिज्ञ मझधार में हमेशा के लिए डूब भी सकती है।


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