आलू की उन्नत खेती के लिए विषाणु रोग रहित आलू बीज उत्पादन  हेतु एरोपॉनिक विधि का म.प्र. सरकार के साथ आज दिल्ली में अनुबंध हुआ। इसके अंतर्गत ग्वालियर में मध्यप्रदेश की पहली लैब स्थापित होगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अंतर्गत केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान और शिमला ने हवा में आलू के बीज उत्पादन की यह अनूठी तकनीक विकसित की है।केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुख्य अतिथि एवं मध्य प्रदेश के उद्यानिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री भारत सिंह कुशवाह के विशेष अतिथि के रूप में इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया।अनुबंध के कार्यक्रम के अवसर पर केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने बताया कि किसानों को फसलों के उन्नत एवं प्रमाणित बीज समय पर उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार अपनी पूरी प्रतिबद्धता के साथ काम कर रही है। इसी कड़ी में आईसीएआर के संस्थानों द्वारा अपने-अपने क्षेत्र में नई तकनीकों के विकास पर लगातार काम किया जाता है।

केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने इस बात पर प्रसन्नता जताई कि केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान और शिमला के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित विषाणु रोग रहित आलू बीज उत्पादन की एरोपॉनिक विधि के माध्यम से बीज आलू की उपलब्धता देश के कई भागों में किसानों के लिए सुलभ की जा रही है, और आज मध्यप्रदेश के बागवानी विभाग को इस तकनीक का लाइसेंस देने के लिए अनुबंधित किया गया है। श्री तोमर ने यह भी कहा कि यह नई तकनीक आलू के बीज की आवश्यकता को महत्वपूर्ण रूप से पूरा करेगी और राज्य के साथ-साथ ही पुरे देश में भी आलू के उत्पादन में वृद्धि करेगी। श्री तोमर ने आगे कहा कि आलू विश्व की सबसे महत्वपूर्ण गैर-अनाज फसल है, जिसकी वैश्विक खाद्य प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका है। श्री तोमर ने श्रेष्ठ अनुसंधान के लिए कृषि वैज्ञानिकों की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि कृषि के समग्र विकास के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार अनेक योजनाओं पर मिशन मोड में काम कर रही है।मध्यप्रदेश के मंत्री श्री कुशवाह ने उम्मीद जताई कि यह तकनीक आलू बीज की जरूरत काफी हद तक पूरा करेगी व राज्य में उत्पादन में बढ़ायेगी। श्री कुशवाह ने कहा कि मध्यप्रदेश , आलू का छठा देश में सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। मालवा क्षेत्र उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मध्यप्रदेश आलू प्रसंस्करण के लिए आदर्श गंतव्य के रूप में सामने आया है।मध्यप्रदेश  में प्रमुख आलू उत्पादक क्षेत्र इंदौर,शाजापुर, भोपाल ग्वालियर, उज्जैन, देवास, तथा प्रदेश के अन्य छोटे क्षेत्र छिंदवाड़ा, सीधी, सतना, सागर, दमोह, छिंदवाड़ा, जबलपुर, रीवा, सरगुजा, राजगढ़,पन्ना, मुरैना, छतरपुर, विदिशा, रतलाम एवं बैतूल हैं। अभी तक प्रदेश में उच्च गुणवता वाले बीज़ की कमी रही है और अब इसका हल किया जा रहा है। आज हुए इस अनुबंध से मध्य प्रदेश के आलू उत्पादन किसानों को और सहूलियत होगी। इस संबंध में श्री कुशवाह ने कृषि मंत्री श्री तोमर को धन्यवाद दिया,साथ ही कहा कि मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों की चिंता करते हुए योजनाओं को गंभीरता से अमल में ला रहे हैं। मुख्यमंत्री ने अनेक सौगातें दी है।मध्यप्रदेश के बागवानी आयुक्त श्री ई. रमेश कुमार ने कहा कि म.प्र. को लगभग चार लाख टन बीज़ की आवश्यकता है, जिसे 10 लाख मिनी ट्यूबर उत्पादन क्षमता वाली इस तकनीक से पूरा किया जाएगा। ग्वालियर में एक जिला- एक उत्पाद के अंतर्गत आलू फसल का चयन किया गया है।

डेयर के सचिव व आईसीएआर के डीजी डा. त्रिलोचन महापात्र ने भी संबोधित किया। डीडीजी-बागवानी डा. आनंद कुमार सिंह, म.प्र. के अपर संचालक-बागवानी डा. के.एस. किराड़, केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान के प्रभारी निदेशक डा. एन.के. पांडे, एग्रीनोवेट इंडिया की सीईओ डा. सुधा मैसूर ने भी अपने विचार रखें। सुश्री पूजा ने कार्यक्रमका संचालन किया। एरोपॉनिक के जरिये पोषक तत्वों का छिड़काव मिस्टिंग तकनीकी के द्वारा  जड़ों में किया जाता है। पौधे का ऊपरी भाग प्राकृतिक रूप से खुली हवा व प्रकाश में रहता है। एक पौधे से औसत 35-60 मिनिकन्द (3-10 ग्राम) प्राप्त किए जाते हैं। चूंकि, मिट्टी उपयोग नहीं होती तो मिट्टी से जुड़े रोग नहीं होते। पारंपरिक प्रणाली की तुलना में एरोपॉनिक प्रजनक बीज के विकास में दो साल की बचत करती है।


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