लखनऊ: 

“हर बंजर के लिए मेघ को चलो बुलाते

हर पीड़ित के लिए चलो तुम हृदय रुलाते

मन की धरती कभी न सूखे करो कामना

सारी भूमि हरी कर देगी यही साधना

हो कितनी अनजान राह यह भूल न जाना

ओ मेरे जीवन के यात्री चलते जाना”

इन प्रेरणादायी पंक्तियों के रचनाकार को हिंदी साहित्य जगत ‘तिरुमल्लै नंबाकम वीर राघव आचार्य’ ‘रांगेय राघव’ के नाम से जानता है। मूलतः तमिल भाषी राघव से आमतौर पर नई पीढ़ी अपरिचित सी है। लेकिन अब ऐसा बहुत दिनों तक नहीं हो सकेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाराजा सुहेलदेव राज्य विश्वविद्यालय, आजमगढ़ में इस अद्भुत साहित्यकार के नाम पर शोध पीठ की स्थापना की घोषणा की है। उपेक्षा और गुमनामी के अंधेरों में लगभग गुम इस महान साहित्यकार के बारे में मुख्यमंत्री योगी की यह पहल न केवल उनके कालजयी साहित्यिक अवदान पर अब शोध-अध्ययन को प्रोत्साहित करेगी, बल्कि नई पीढ़ी को इनके व्यक्तित्व-कृतित्व से परिचय भी कराएगी। गुरुवार को आज़मगढ़ की जनसभा में मुख्यमंत्री योगी ने डॉ.राघव के साहित्यिक अवदान पर प्रशंसा करते हुए कहा कि रांगेय राघव की रचनाएं हमें दुनिया-समाज को समझने की नई दृष्टि देने वाली हैं। 

मानवीय सरोकारों के रचनाकार

रांगेय राघव के रचनाकर्म को देखें तो उन्होंने अपने अध्ययन से, हमारे दौर के इतिहास से, मानवीय जीवन की, मनुष्य के दुःख, दर्द, पीड़ा और उस चेतना की, जिसके भरोसे वह संघर्ष करता है, अंधकार से जूझता है, उसे ही सत्य माना और उसी को आधार बनाकर लिखा। ऐसे दौर में जबकि साहित्यकारों की वैचारिक संबद्धता उनकी कृतियों की रूपरेखा तय करती रही हो, तब भी रांगेय राघव ने किसी ‘वाद का आवरण’ न लेते हुए मानवीय सरोकारों को अपनी रचनाओं का विषय बनाया। वर्ष 1949 में आगरा विश्वविद्यालय से गुरु गोरखनाथ पर शोध करके रांगेय राघव ने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी। हिंदी भाषा के माध्यम से विदेशी साहित्य को जनता तक पहुंचाने का कार्य उन्होंने किया। प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के नगर मोहनजोदड़ो पराधारित ऐतिहासिक उपन्यास ‘मुर्दों का टीला’ आज भी सिन्धु घाटी सभ्यता के समाज को समझने का अत्यंत प्रमाणिक माध्यम माना जाता है। रांगेय राघव ने कई जर्मन और फ्रांसीसी साहित्यकारों की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया। उन्होंने शेक्सपियर के दस नाटकों का भी हिंदी में अनुवाद किया, वे अनुवाद मूल रचना सरीखे थे, इसलिए रांगेय राघव को ‘हिंदी के शेक्सपियर’ की संज्ञा दी गई। संस्कृत रचनाओं के अलावा विदेशी साहित्य का भी हिंदी में अनुवाद किया। रांगेय राघव के बारे में कहा जाता था कि ‘जितने समय में कोई व्यक्ति पुस्तक पढ़ेगा, उतने समय में वे किताब लिख सकते थे।’

कई भाषाओं के ज्ञाता थे डॉ. राघव

रांगेय राघव तमिल, तेलगु के अलावा हिंदी, अंग्रेजी, ब्रज और संस्कृत भाषा के विद्वान थे। उन्हें साहित्य की सभी विधाओं में महारत हासिल थी। उन्होंने मात्र अड़तीस वर्ष की अल्पायु में उपन्यास, कहानी, कविता, आलोचना, नाटक, यात्रा वृत्तांत, रिपोर्ताज के अतिरिक्त सभ्यता, संस्कृति, समाजशास्त्र, मानवशास्त्र, अनुवाद, चित्रकारी, शोध और व्याख्या के क्षेत्रों में डेढ़ सौ से भी अधिक पुस्तकें लिखी। अपनी अद्भुत प्रतिभा, असाधारण ज्ञान और लेखन क्षमता के कारण वे अद्वितीय लेखक माने जाते हैं।


यह भी पढ़ें



प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *