उत्तर प्रदेश में गंगा के जल की गुणवत्ता में हुआ सुधार

लखनऊ, प्रदेश की योगी सरकार में नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत शुरू की गईं विभिन्न परियोजनाओं के सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं। गंगा में प्रदूषण की वजह से जो डॉल्फिन गायब हो रहीं थीं, अब वही डॉल्फिन गंगा के जल की गुणवत्ता में सुधार होने की वजह से वापस आने लगी हैं। बृजघाट, नरौरा, कानपुर, मिर्जापुर, वाराणसी में डॉल्फिन को प्रजनन करते हुए भी देखा गया है, जिससे उम्मीद है कि आने वाले दिनों में यहां इनकेर संख्या में और भी बढ़ोतरी देखने को मिलेगी। फिलहाल, उत्तर-प्रदेश में गंगा में डॉल्फिन की आबादी 600 के आसपास होने का अनुमान लगाया गया है।

उल्लेनखनीय है कि नमामि गंगे कार्यक्रम केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का ड्रीम प्रोजेक्‍ट है। उत्तर-प्रदेश में इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए योगी आदित्यनाथ की सरकार की तरफ से हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां 2014 से अब तक पूरी हुईं 23 परियोजनाओं के द्वारा 460 एमएलडी से अधिक सीवेज को गंगा में प्रवाहित होने से रोका जा रहा है। इसी कार्यक्रम के तहत सितंबर 2022 से दिसंबर 2022 के बीच झांसी, कानपुर, उन्नाव, शुक्लागंज, सुल्तानपुर बुढ़ाना, जौनपुर और बागपत में 2304.55 करोड़ रुपए की लागत से लगभग 33 एमएलडी (दुरुस्त किए गए 130 एमएलडी सहित) की अतिरिक्त उपचार क्षमता भी बनाई जाएगी। उम्मीद जताई गई है कि दिसंबर 2022 तक पूरे गंगा बेसिन में प्रतिदिन 1336 मिलियन लीटर की उपचार क्षमता का निर्माण किया जाएगा। 2022 में कुल सीवेज शोधन क्षमता निर्माण 2109 एमएलडी होगा, जो इस बात को दर्शाता है कि नमामि गंगे के तहत युद्ध स्तर पर काम किया जा रहा है।

डीओ, बीओडी और एफसी मापदंडों में हुआ काफी सुधार…
उत्तर-प्रदेश में 20 स्थानों पर 2014 से 2022 की अवधि के दौरान नदी के पानी की गुणवत्ता के आकलन से पता चला है कि घुलित ऑक्सीेजन (डीओ), बॉयोकेमिकल डिमांड (बीओडी) और फेकल कोलीफॉर्म (एफसी) जैसे मापदंडों में काफी सुधार हुआ है। जांच में पाया गया कि 20 स्थानों पर पीएच (पानी कितना अम्लीय है) स्नान के लिए पानी की गुणवत्ता के मानदंडों को पूरा करता है, जबकि डीओ, बीओडी और एफसी में 20 में से क्रमश: 16, 14 अैर 18 स्थानों पर सुधार हुआ है। कन्नौज से वाराणसी तक नदी के प्रदूषित खंड की बात करें तो बीओडी में वर्ष 2015 में 3.8-16.9 मिलीग्राम/एल के मुकाबले 2022 में 2.5-4.3 मिलीग्राम/ एल तक का बेहतरीन सुधार दर्ज किया गया है। एक्सपर्ट्स के अनुसार बीओडी जितना कम होगा, पानी की गुणवत्ता अधिक बेहतर होगी।

संगम में प्रदूषण कम करने के लिए महत्वापूर्ण रहा मिशन मोड कार्यक्रम…..
उत्तर प्रदेश के शहरों में कुछ प्रमुख उपलब्धियों में संगम में प्रदूषण को कम करने के लिए अर्ध कुंभ 2019 से पहले मिशन मोड पर प्रयागराज से पहले स्वीकृत परियोजनाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। अर्धकुंभ में 20 करोड़ से अधिक लोगों ने गंगा नदी में लगाकर पाया कि पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। वाराणसी में भी, दीनापुर में 140 एमएलडी एसटीपी की लंबे समय से लंबित परियोजना को समयबद्ध तरीके से पूरा किया जा चुका है। रमना में 50 एमएलडी एसटीपी भी हाइब्रिड एन्युटी मोड के तहत रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया था और अब इसे चालू किया जा चुका है। कानपुर में 80 एमएलडी अनुपचारित सीवेज को गंगा नदी में ले जाने वाले सीसामऊ नाले को टैप किया जा चुका है और इसे एनएमसीजी द्वारा उचित योजना और निष्पादन के माध्यम से मौजूदा एसटीपी में जोड़ दिया गया है।

गंगा नदी को जीवंत करने के मकसद से शुरू किया गया नमामि गंगे कार्यक्रम….
नमामि गंगे कार्यक्रम 2015 में एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाकर गंगा नदी को जीवंत करने के मकसद से शुरू किया गया था। स्वच्छ गंगा मिशन को देखने के तरीके में आमूलचूल परिवर्तन लाने के लिए नीतिगत निर्णय लिए गए। गंगा नदी में बहने वाले नालों को टैप करके सीवेज के अवरोधन और डायवर्जन पर ध्याबन केन्द्रित किया गया था। पुनर्वास और नवनिर्मित सीवरेज बुनियादी ढांचे दोनों के लिए संचालन और रख-रखाव की अवधि को 15 वर्ष तक बढ़ा दिया गया है।
बता दें कि भारत में जल क्षेत्र के इतिहास में एक वाटरशेड हाइब्रिड एन्युेटी मोड (एचएएम) और वन-सिटी-वन ऑपरेटर के तहत एसटीपी का निर्माण किया जा रहा है ताकि प्रदर्शन जवाबदेही सुनिश्चित हो सके। वन-सिटी-वन-ऑपरेटर योजना के तहत एक ऑपरेटर द्वारा पूरे शहर के लिए संपत्ति के रख-रखाव, पुनर्वास, नए निर्माण आदि की परिकल्पना की गई है।


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