Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the health-check domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/j1pf0zwyqhkx/postinshort.in/wp-includes/functions.php on line 6121
Barnyard Millet(सांवा): इसकी खेती से पाएँ अच्छा मुनाफ़ा

Barnyard Millet(साँवा) एक पौष्टिक फसल है और किसानों के लिए एक अच्छा आय स्रोत है। इस लेख में साँवा की खेती के बारे में जानकारी दी गई है

साँवा (सनवा) एक छोटी सी अनाज की फसल है जो भारत में प्राचीन काल से उगाई जा रही है। यह एक सूखा-सहिष्णु (drought-tolerant) फसल है और कम उपजाऊ भूमि में भी उगाई जा सकती है। साँवा में उच्च प्रोटीन और फाइबर सामग्री होती है, और यह कई महत्वपूर्ण खनिजों का भी एक अच्छा स्रोत है।

भारत में, साँवा का सबसे अधिक उत्पादन राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और मध्य प्रदेश में होता है। इस फसल को उगाने के लिए उपयुक्त जलवायु शुष्क और गर्म होती है। साँवा की खेती के लिए दो मौसम होते हैं: खरीफ और रबी। खरीफ मौसम में साँवा की बुवाई जून से जुलाई के महीने में की जाती है, और फसल सितंबर से अक्टूबर के महीने में तैयार हो जाती है। रबी मौसम में साँवा की बुवाई अक्टूबर से नवंबर के महीने में की जाती है, और फसल मार्च से अप्रैल के महीने में तैयार हो जाती है।

साँवा की खेती के लिए दो प्रकार की मिट्टी उपयुक्त होती है: काली मिट्टी और बलुई मिट्टी। इस फसल को उगाने के लिए मिट्टी का pH मान 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए। साँवा की खेती के लिए खेत को अच्छी तरह से तैयार किया जाना चाहिए। खेत में 2 से 3 बार जुताई करनी चाहिए। जुताई के बाद खेत में पाटा लगाना चाहिए।

साँवा की बुवाई के लिए बीज दर 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है। बीज को 3 से 4 सेमी की गहराई में बोना चाहिए। बुवाई के बाद खेत में हल्की सिंचाई करनी चाहिए।

साँवा की फसल को 1 से 2 बार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 20 से 25 दिन बाद और दूसरी निराई-गुड़ाई बुवाई के 40 से 45 दिन बाद करनी चाहिए।

साँवा की फसल को 2 से 3 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 15 से 20 दिन बाद और दूसरी सिंचाई बुवाई के 40 से 45 दिन बाद करनी चाहिए।

साँवा की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशक का छिड़काव करना चाहिए। खरपतवारनाशक का छिड़काव बुवाई के 20 से 25 दिन बाद और बुवाई के 40 से 45 दिन बाद करना चाहिए।

साँवा की फसल में रोग और कीटों का प्रकोप कम होता है। लेकिन अगर रोग और कीटों का प्रकोप हो जाए तो उनका नियंत्रण करना चाहिए।

साँवा की फसल की कटाई सितंबर से अक्टूबर के महीने में या मार्च से अप्रैल के महीने में की जाती है। फसल की कटाई के बाद इसे थ्रेशर से थ्रेश किया जाता है। थ्रेशिंग के बाद बाजरा के दानों को साफ करके भंडारण किया जाता है।

साँवा की खेती एक लाभदायक व्यवसाय है। इस फसल से प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल तक बाजरा का उत्पादन होता है। बाजरा के दानों का बाजार मूल्य अच्छा होता है। इसलिए, साँवा की खेती किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प है।

यहां साँवा (संवा) की खेती के कुछ लाभ दिए गए हैं:

यह एक सूखा-सहिष्णु फसल है और इसे सीमांत और कम उपजाऊ मिट्टी में उगाया जा सकता है।

यह अधिक उपज देने वाली फसल है और प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल तक उत्पादन कर सकती है।

यह एक पौष्टिक फसल है और प्रोटीन, फाइबर और खनिजों का अच्छा स्रोत है।

यह अपेक्षाकृत कीट और रोग प्रतिरोधी फसल है।

यह किसानों के लिए आय का एक अच्छा स्रोत है।

यदि आप एक लाभदायक और टिकाऊ फसल उगाना चाहते हैं, तो साँवा (संवा) एक अच्छा विकल्प है।


यह भी पढ़ें



प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *