योगी सरकार द्वारा सिद्धार्थनगर का ओडीओपी घोषित करने के बाद से बढ़ रहा कालानमक का क्रेज
- इस महीने के अंत या दिसंबर के शुरू में होगी कटाई
- आधा एकड़ रकबे में जुलाई में हुई थी रोपाई
लखनऊ/गोरखपुर। जुलाई में लखनऊ के राजभवन में करीब आधा एकड़ रकबे में रोपी गई कालानमक धान की फसल पककर तैयार है। इस महीने के अंत में या दिसंबर के शुरू में इसकी कटाई होगी। यहां रोपा गया कालानमक पूरी तरह जैविक है। इसमें खाद एवं कीटनाशक के रूप में किसी भी तरह के रसायन का प्रयोग नहीं किया गया है। मसलन यह पूरी तरह जैविक है।
उल्लेखनीय है कि कालानमक धान मूलतः गौतम बुद्ध से जुड़े सिद्धार्थनगर का उत्पाद है। ई योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इसकी विशिष्टताओं की वजह से ही इसे जीआई (जियोग्राफिकल इंडीकेशन) भी मिल चुका है। इसका मतलब यह हुआ कि जिन जिलों की कृषि जलवायु सिद्धार्थनगर के समान है, उनमें पैदा होने कालानमक की खूबियां एक जैसी होंगी। ऐसे समान कृषि जलवायु वाले जिलों में महाराजगंज, गोरखपुर, संतकबीरनगर, बलरामपुर, बहराइच, बस्ती, कुशीनगर, गोंडा, बाराबंकी, देवरिया व गोंडा भी आते हैं। जीआई से कालानमक को विस्तार मिला तो 2018 में योगी सरकार द्वारा इसे सिद्धार्थनगर का ओडीओपी एक जिला,एक उत्पाद घोषित करने से इसकी लोकप्रियता में चार चांद लग गए।
नतीजतन पांच साल पहले जो कालानमक धान विलुप्त होने की कगार पर था। जिसका रकबा घटकर 2200 हेक्टेयर तक सिमट गया था वह गुजर रहे खरीफ के सीजन में बढ़कर करीब 70 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया। इस तरह कालानमक जीआई और ओडीओपी के पंख पर सवार होकर लगातार समृद्धि का शिखर चूमने की ओर अग्रसर है। सरकार के प्रोत्साहन से कालानमक की खेती से जुड़े किसान मालामाल हो रहे हैं तो इसकी महक व पोषक तत्वों की पूरी दुनिया मुरीद हो रही है। इसी क्रम में यह खरीफ के बीते सीजन में राजभवन को भी रास आ गया।
कालानमक धान से आय दोगुनी कर रहे किसान
कालानमक धान की खेती किसानों की आय दोगुनी करने में कारगर साबित हो रही है। यही वजह है कि बड़ी संख्या में किसान इसकी खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। यह योगी सरकार की तरफ से सिद्धार्थनगर की ओडीओपी के इस उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए लगातार हुए प्रयासों का परिणाम है। हर खरीफ सीजन में खेती के लिए कालानमक धान के बीज की मांग बढ़ती जा रही है। गत खरीफ सीजन से करीब तीन गुना बीज की बिक्री इस सीजन में हुई।
योगी सरकार की ब्रांडिंग ने दी कालानमक की खेती को संजीवनी
कालानमक धान की खेती बुद्ध काल की मानी जाती है। इसका इतिहास 2600 साल पुराना माना जाता है। मान्यता है कि भगवान बुद्ध ने कपिलवस्तु की तराई में अपने शिष्यों को यह चावल यह कहते हुए सौंपी थी कि इसकी खुश्बू व गुणवत्ता उनकी याद दिलाएगी। इसी कारण कालानमक चावल को बुद्ध का प्रसाद भी कहा जाता है। मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने कालानमक को ओडीओपी में शामिल कर इसकी ब्रांडिंग पर भी ध्यान दिया। नई प्रजातियों के शोध को बढ़ावा दिया। इसके परिणाम बेहद उत्साहजनक रहे। ब्रांडिंग को और मजबूत करने के लिए योगी सरकार ने मार्च 2021 में कपिलवतु महोत्सव के साथ ही कालानमक महोत्सव का भी आयोजन किया था। सरकार के प्रयासों से इसका निर्यात भी तेजी से बढ़ रहा है और यह चावल ई कामर्स प्लेटफार्म पर भी उपलब्ध है।
इम्युनिटी बूस्टर है कालानमक चावल
कालानमक चावल पर लंबे समय से काम कर रहे कृषि वैज्ञानिक डाक्टर आरसी चौधरी के अनुसार सुगंध और स्वाद के साथ पोषण में भी कालानमक चावल नायाब है। यह कुल मिलाकर इम्युनिटी बूस्टर है। प्रोटीन, जिंक और आयरन के स्रोत के रूप में मान्य कालानमक चावल में बीटा कैरोटीन भी पाया जाता है। इसकी मात्रा प्रति 100 ग्राम चावल में 42 मिलीग्राम बीटा कैरोटीन मिलता है। बीटा कैरोटीन विटामिन ए का मूल तत्व है। यही नहीं, इसमें चावल की अन्य प्रजातियों के मुकाबले प्रोटीन दोगुना, आयरन तीन गुना, और जिंक चार गुना प्रमाणित किया जा चुका है।
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